श्री दुर्ग्याणा मंदिर
सरोवर के मध्य में स्थित श्री दुर्ग्याणा मंदिर उत्तर भारत के पंजाब प्रांत के पवित्र शहर अमृतसर में हिंदुओं का एक बहुत महत्वपूर्ण और विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है, जहाँ प्रतिदिन हजारों भक्त पूजा-अर्चना और दर्शन करने आते हैं। सरोवर के ऊपर बना पुल मंदिर तक पहुंच प्रदान करता है । मंदिर का तालाब 541 फीट X 432 फीट और 20 फीट गहरा है, जो सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 16वीं शताब्दी में यहां बनाया गया था । श्री दुर्ग्याणा मंदिर का नाम माँ दुर्गा जी के नाम पर रखा गया है, क्योंकि प्राचीन काल में जब सैनिकों को युद्ध के लिए जाना होता था, तो वे उससे पहले माँ दुर्गा जी की पूजा करते थे और उनसे जीत का आशीर्वाद मांगते थे ।
श्री दुर्ग्याणा मंदिर की आधारशिला पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने वर्ष 1924 में गंगा दशमी (दशहरा) के दिन रखी थी। पुनर्निर्माण से पहले मंदिर 1921 में भी अस्तित्व में था । इसकी पुष्टि 1893 के अमृतसर नगर पालिका गजट के रिकॉर्ड से होती है, जो दुर्ग्याणा सरोवर और उसके आसपास के देवी द्वार के बारे में बताता है, जहां हिंदू तीर्थयात्रियों की भीड़ लगी रहती थी ।
मुख्य मंदिर के गुंबदों और उससे सटी दीवारों के ऊपरी हिस्से पर सोने की नक्काशी की गई है । मुख्य प्रवेश द्वार ((दर्शनी ड्योढ़ी) पर 12X12 फीट का विशाल चांदी का नक्काशी उत्किर्त दरवाजा लगा है, जो मुख्य मंदिर के सभी दरवाजों के साथ मिलकर दिव्य सौंदर्य की छवि में मंदिर की पवित्रता को गौरवान्वित करता है । मुख्य मंदिर के अंदर केंद्रीय गर्भगृह में भगवान की मनमोहक विगृह (प्रतिमा) विराजमान हैं। खड़ी स्थिति में श्री लक्ष्मी-नारायण जी और उनके एक तरफ श्री राम दरबार और दूसरी तरफ श्री गिरिराज जी महाराज के साथ श्री राधा-कृष्ण जी की मनमोहक विगृह (प्रतिमा) एक अद्भुत दिव्य रूप प्रस्तुत करती हैं ।
धार्मिक मान्यता के अनुसार मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम जी अपने अश्वमेघ यज्ञ के दौरान यहां पधारे थे । उनके पुत्र लव और कुश ने अपना बचपन अपनी माता सीता के साथ महर्षि वाल्मिकी के आश्रम, श्री राम तीर्थ में बिताया, जो कि श्री दुर्ग्याणा मंदिर से लगभग 8 किमी. दूर है । इसके साथ ही सूर्य देव के पोते राजा इश्वाकू ने इस भूमि पर कई यज्ञ किए थे ।
श्री दुर्ग्याणा मंदिर के इस भव्य निर्माण का विचार गुरसहाय मल कपूर जी के दिमाग की उपज था, जो एक महान दूरदर्शी और धार्मिक विचारधारा वाले व्यक्ति थे, जिनकी प्रतिमा दर्शनी ड्योढ़ी के मुख्य द्वार के बाहर स्थापित है । इतिहास में ऐसे कई सबूत भी हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ । यह रेलवे स्टेशन से मात्र आधा किलोमीटर दूर है और बस स्टैंड से लगभग 1.5 किलोमीटर दूर है ।