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श्रीरघुनाथ मंदिर

यह मंदिर सर्वशक्तिमान की दिव्य लीला का प्रमाण है। ऐसा माना जाता है कि यहां एक विशाल खुला मैदान था। महाराजा रणजीत सिंह की सेनाएँ यहाँ परेड करती थीं । उन दिनों महात्मा भगवान दास जी महाराज नामक एक वैरागी महात्मा ने, यह स्थान शहर से बहुत दूर और एकांत होने के कारण यहाँ आसन जमाया और प्रभु की भक्ति में लीन हो गए। महात्मा बैरागी जी ने अपने उपदेश के लिए काबुल, पेशावर, कोट इस्से खां, शिकारपुर तथा कटासराज में भगवान के मंदिर बनवाए थे और वे इसी स्थान पर एक मंदिर बनाना चाहते थे। उनके पास गुरता की शक्ति थी (ऐसी शक्ति जिससे एक व्यक्ति एक ही समय में विभिन्न स्थानों पर एक साथ देखा जा सकता है)। इस शक्ति के कारण, वह दिन के 10 बजे अमृतसर में होते थे, और फिर 12 बजे कलकत्ता में दिखाई देते थे और एक बजे बम्बई के भक्तों के बीच उपदेश देते पाए गए। अब श्री दुर्ग्याणा कमेटी की देखरेख में महंतों से सबकुछ खरीदकर और किराएदारों से खाली करवाकर इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।