यह धर्मशाला श्री दुर्ग्याणा मंदिर के मुख्य गेट के सामने परिसर के ठीक अंदर स्थित है। इसका निर्माण विक्रमी संवत के वर्ष 1989 के फाल्गुन महीने में उस समय एक लाख रुपये की लागत से बीबी धनवंत कौर ने करवाया था। धनवंत कौर का विवाह लाहौर के राजा राम शरण के छोटे भाई राजा हरकिशन से हुआ था। वह अपने यौवन काल में ही विधवा हो गई थीं। उनकी वेदांत, संत-सेवा, यज्ञ तथा अन्य धार्मिक गतिविधियों में स्वाभाविक रुचि थी। चूँकि वह अमृतसर की रहने वाली थी और यह उनका ‘मायका’ था, इसलिए शहर के लोग उन्हें बुआ कहते थे।
मंदिर परिसर में बनी इस धर्मशाला में ठहरने वाले तीर्थ-यात्रियों के मन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। इसमें दो बड़े हॉल के साथ लगभग 40 कमरे हैं, जिनका शुल्क बहुत ही उचित हैं। यहां सभी आवश्यक अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस धर्मशाला में मांस, मदिरा व धूम्रपान वर्जित है।